हम प्रच्छन्न बिखरे पड़े है एक दूसरे के सापेक्ष ब्रह्माण्ड की अलग-अलग आयामों में चक्कर लगा रहे अपने अस्तित्व के जैसे दो श्याम विवर लगाते है एक दूसरे का सहज-सरल पर नहीं पहुँचे कहीं... हमारे गति ने उत्पन्न किये हैं अनेक आयामो के जीवन वृत्त तुम्हारी ऊर्जा के अध्यारोपण से मैंने तय किये हजारों वर्षों की दूरी पल में ही ... आलिंगनबद्ध हृदय-खण्डों ने उत्पन्न की है दिक्-काल में वक्रता जिस ओर झुकते जा रहे सभी पार्थिव-पिण्ड.. हृदय के अभ्यांतर के सन्नाटे में घुल गया है तुम्हारा अनहद स्वर, वक्त भी थम सा गया है हमारे महामिलन की इंतिजार में...
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