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Showing posts from September, 2020

ना

लड़कों को सिखाएं लड़की की "ना" का सम्मान करना  ----------------------------------------------------------------- मैंने पहली बार जब 'ना' कहा  तब मैं 8 बरस की थी  "अंकल नहीं .. नहीं अंकल ' एक बड़ी चॉकलेट मेरे मुंह में भर दी अंकल ने  मेरे 'ना' को चॉकलेट कुतर कुतर कर खा गई मैं लज्जा से सुबकती रही  बरसों अंकलों से सहमती रही फिर मैंने ना कहा रोज़ ट्यूशन तक पीछा करते उस ढीठ लड़के को  ' "ना ,मेरा हाथ न पकड़ो " ना ,ना... मैंने कहा न  " ना " मैं नहीं जानती थी कि "ना "एक लफ्ज़ नहीं ,एक तीर है जो सीधे जाकर गड़ता है मर्द के ईगो में कुछ पलों बाद मैं अपनी लूना सहित औंधी पड़ी थी मेरा " ना" भी मिट्टी में लिथड़ा दम तोड़ रहा था तीसरी बार मैंने "ना" कहा अपने उस प्रोफेसर को जिसने थीसिस के बदले चाहा मेरा आधा घण्टा मैंने बहुत ज़ोर से कहा था  " ना " "अच्छा..! मुझे ना कहती है " और फिर बताया कि जानते थे वो मैं क्या- क्या करती हूँ मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ  अपने निजी प्रेमिल लम्हों की अश्लील व्याख्या सुनते हुए मैं खड़
ये बात पिछले साल की है।मई का महीना,अंगारे बरसता आकाश ।इतनी तेज धूप कि पांच मिनट भी खड़े रह जाएं तो 'चौन्ह्आ' आ जाये।कुछ राजगीर और कुछ मजदूर लोग काम कर रहे हैं।हम शेषमणि दौड़ भाग कर सामान जुटा रहे।

डोपामिन

बीते कुछ वर्षों में स्मार्टफ़ोन एक नया एडिक्शन बनकर उभरा है। एक सर्वे के अनुसार हममें से अधिकांश लोग दिन में औसतन 4-5 घंटे फ़ोन में सोशल मीडिया समेत तमाम एप्स को स्क्रोल करते हुए बिताते हैं। छुट्टी के दिनों में तो हम अपने दैनिक कार्यों को छोड़कर पूरा दिन फ़ोन स्क्रोल करते या टीवी देखते बिता सकते हैं और फिर भी हम बोरियत महसूस नहीं करते। जबकि अन्य कार्य जैसे पढ़ाई करना, ऑफिस वर्क, घरेलू कार्य, व्यायाम इत्यादि हमें एक टास्क जैसे लगते हैं जिन्हें करने में हमें कोई मजा नहीं आता और जिन्हें करते हुए हमें बड़ा जोर पड़ता है। जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि पड़े पड़े स्मार्टफ़ोन स्क्रोल करने, टीवी देखने या विडियो गेम खेलने के बजाये इन उत्पादक कार्यों को करना ज्यादा फायदेमंद है। आखिर क्यों एक एक्टिविटी हमें अपीलिंग और दूसरी हमें बोर लगती है?  इसका एक सरल जवाब ये हो सकता है कि फ़ोन स्क्रोल करने, टीवी देखने और विडियो गेम खेलने की अपेक्षा बाकी काम ज्यादा अटेंशन और दिमागी शारीरिक श्रम चाहते हैं। पर वहीँ हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने दैनिक जीवन में उत्पादक कार्यों को करते हुए एक बेहतर जीवन बिताते हैं। आखिर इन लोगो

जयघोष करता आदमी

जयघोष हुआ! महाराज की जय हो! महाराज की जय हो! तूर्यनाद से सहमा भूख-प्यास से आकुल राजपथ पर घीसटता अंतिम व्यक्ति गिर पड़ा उसके हलक से चीख निकली महाराज ....? मंत्रीयों ने वाक्य पूरा किया ...की जय हो! राजा ने सुना  उसका अंतिम समय पर किया गया जयघोष। राजा ने सोचा अंतिम समय में भी  जयघोष करने वाला कितना उत्तम आदमी रहा होगा   राजा ने कहा इसे सम्मानित किया जाएगा राजा की आत्मा मर चुकी थी और उसकी देह। ✍अतुल पाण्डेय

आग

जब चूल्हे में नहीं है आग जब हाथों में नहीं है काम जब स्तनों में नही बह रहा दूध कवि !तुम प्रेम लिखना मैं क्रांति लिखूंगा।। जब युवाओं का, पानी हो गया खून जब हुक्मरान, आँखे ले रहे मूंद जब सब हैं अँधाधुन कवि!तुम स्तुति करना मैं आग लिखूँगा। जब भीड़ कर रही हो न्याय जब सत्ता की सीढ़ी से रिस रहा हो खून संगीन के साए में झुके देहरी कवि!तुम प्रशस्ति-वाचन करना मैं नारे लिखूंगा ।

riya

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मीडिया छी...छी सत्ता केवल रिया...रिया...रिया...रिया! ये स्तर हो गया इस देश का?ये हाल हो गया इस मीडिया का? तनिक भी लज्जा नहीं आती हुक्मरानों और इन मीडिया हाउस वालों को?एक सुनियोजित साजिश के तहत एक आरोपी महिला का चरित्र हनन किया जा रहा।ये है मीडिया ट्रायल क्या होता है? इससे घृणास्पद बात क्या हो सकती है कि किसी मासूम की हत्या को चुनाव जीतने का साधन बना लिया जाय?बिहार चुनाव में सुशान्त के पोस्टर लग रहे हैं।क्या देश में न्यायपालिका मर खप गयी या न्याय तंत्र किसी काम नही रहा।सुशान्त का केस की सीबीआई जाँच चल रही लेकिन बेलगाम बेशर्म मीडिया समानांतर न्याय तंत्र विकसित कर आरोपी को दोषी सिद्ध करने में लगा है।   ये भीड़ किसी दिन हमारे-आपके बहन बेटी का चरित्र हनन कर बैठेगी। The cold blooded media doesn't has any interest to talk about farmers,students issues. The sycophantic media is glorifying the government. It does not ask questions of power. It only puts the public in the dock. For this, the woman is an object. The ideology of a organization was imposed on the audience
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जो शेष बच गया शून्य नहीं था ,प्यार था.. जीवन शान्त कोलाहल का एक ज्वार था दुख की सीमा सन्तापों में सुख के अप्रतिम प्रलापो में शब्दो से विचलित भावो में सकुचे सिमटे से बाहो में सुख का झीना संसार था जो शेष बचा गया शून्य नहीं था, प्यार था.. पनघट से पनिहारीन रूठी पतझड़ में अमराई डूबी मोती ढूलक चले वनपथ पर कवि से वो कविताई छूटी सुख की दुख का अवगुन्ठन पहने जीवन का विस्तार था जो शेष बच गया शून्य  नहीं था,प्यार था.. भावों की जब मनका गूंथी शब्दों के आगे बेबस था सपनो की जब जब आहूति दी अपनो के आगे बेबस था तेरा रूक कर मुड़ जाना ही कमेरा असीम विस्तार थी जो शेष बच गया शून्य नही था, प्यार था.. वो अंधेरे की आहट थी मैं रूकता ना तो क्या करता? हाथों से अगुलियां फिसल गयी ना ठिठका होता गिर पड़ता, उन आंखो का सहज सलोनापन मेरा किञ्जित आधार था जो शेष बच गया शून्य नहीं वो प्यार था.. जीवन शान्त कोलाहल का एक ज्वार था.. शेष बच गया

स्वतंत्र मीडिया

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" I believe completely in any government, whatever it might be, having stout critics, having an opposition to face. Without criticism people and governments become complacent. The whole parliamentary system of government is based on such criticism. The free Press is also based on criticism. It would be a bad thing for us if the Press was not free to criticise, if people were not allowed to speak and criticise government fully and in the open. It would not be parliamentary government. It would not be proper democracy. I welcome criticism in Parliament. In fact, we welcome criticism from our own party members"___ Jawaharlal Nehru .

मीडिया

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भारत में 40 करोड़ सोशल मीडिया यूजर है।ये किसि ह् किसी पार्टी के समर्थक पेज से जुड़े है।इनको लगातार पोलेराइज़ करने का प्रयास किया जा रहा। Facebook- लगभग 346.2 मिलियन Twitter- लगभग 11.45 मिलियन Instagram- लगभग 80 मिलियन YouTube- लगभग 265 मिलियन इन सभी प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज़ और नफरत भरे कन्टेन्ट की भरमार है।तस्वीरो के साथ छेड़ छाड़ कर उनके संदर्भ बदल दिए गए है। भारत में 50 फीसदी से ज्यादा फेसबुक यूजर 25 साल से कम के हैं।ये सभी नए वोटर हैं।इन्हे इतिहास की गहरी समझ नही है।ये किसी एक पेज से जुड़ते हुए..विभिन्न राजनैतिक विचारधारों पर आधारित ट्रैप मेंएआ फंसते जाते है। इन्हे बार बार सुनियोजित तरीके से फेक न्यूज़ के माध्यम से,गलत बातों को तथ्य के रूप में बताया जाता है।इस नई पीढ़ी को कृत्रिम अस्मिता बोध से भर दिया जाता है। कम वय में ही इनकी कोरा मस्तिष्क घृणा ,विद्वेष,छोभ से भरता जाता है। कोई भी राजनैतिक दल दूध का धुला नही है।सबके अपने अपने मीडिया सेल हैं।लेकिन सत्ताधारी दल के मीडिया सेल के सम्मन दूर दूर कोई अन्य दल नहीं है। ओफ्फिशली इसके सदस्यों की संख्या 18 करोड़ हैं जिसमे से अनुमानतः 10