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(१)उसके पास समय नहीं था मेरे पास धैर्य, उसके पास शब्द नहीं थे मेरे पास शब्दिता, इस तरह हम एक दूसरे के पूरक हुए। (२)मेरे शब्दों की शिरोरेखा से लटके हुए अक्षर अक्षरों में छिपीं हुई ध्वनियां ध्वनियों में गूँजते भाव उसके अस्तित्व का प्रमाण हैं अस्फुट अधरों पर मेरे नाम का लिपटना इस ब्रह्मांड की सबसे प्रेमिल क्रिया है।

मिल्खा सिंह और नेहरू

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....जब प्रधानमंत्री नेहरू ने मिल्खा सिंह के नाम पर पूरे देश एक दिन की छुट्टी दी। वह स्थान था रोम और वर्ष 1960 था।मौका था ओलम्पिक गेम्स का। हर चार साल में होने वाले ओलम्पिक गेम्स की लोकप्रियता उस दौर में भी वही थी और आज भी उसका क्रेज़ बरकरार है हाँ ये है कि पहले खिलाड़ी देश के लिए खेलते थे और आज खेल पैसों के लिए खेला जाता है। फ्लाइंग सिख के नाम से प्रसिद्ध मिल्खा सिंह, ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं जिन्होंने रोम ओलम्पिक्स में स्वतंत्र भारत का प्रतिनिधित्व किया था।धावक मिल्खा सिंह ने ना सिर्फ खेल जगत में अपना एक विशिष्ट स्थान हासिल किया था बल्कि अपनी ईमानदारी का भी उन्होंने ऐसा प्रदर्शन दिया जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी प्रभावित हुए बिना रह नहीं सके। जब मिल्खा सिंह रोम में हो रहे समर ओलंपिक की 400 मीटर रेस के लिए मैदान में उतरे तो पूरे भारत की दृष्टि उन पर थी।1960 के रोम ओलंपिक में विश्व रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद मिल्खा सिंह भारत के लिए पदक नहीं जीत पाए और उन्हें चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मैल्कम