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Showing posts from February, 2021

khula aasaman

उसे उड़ने के लिये खुुुलआ आसमान चााहिये था फैलाने के लिए पंख  मुझे बंद मुट्ठी का कोना जिसमें छिप सकूं  दुनिया के झंझवातो से सुदूर घुप्प अंधकार में  उसे चाहिए थी माघ की गुनगुनी धूप जहाँ करवट ले सके अल्हड़पन  मुझे चाहिए था  साँसो का कारोबार  ताकि भर सकूं निश्चेष्ट लोगों की साँसे जो मसले हुए हैं खुद की लाशों तले उसे चाहिए था  बेमौसम की बरसात  जिसमें भींगो दे अपने सभी अनकहे सूखे जज्बात बिखेर दे दुख मे पगी हुई खुशियाँ  मिट्टी की सोंधी सुगंध के वास्ते मुझे चाहिए था  सभी सितारों की रौशनी जिससे भर दूं  दुनिया के पृष्ठ में छिपे अंधेरों में जहाँ जमा की जा रही मक्कारियां उसे चाहिए था  परिजात के फूलों की माला जिसे पहनाती अपने प्रियवर को अनायास ही उसके वक्षस्थल पर रखकर माथा मुझे चाहिए था  उन करोड़ों भूखे पेटों की आंच जिसमें गलाता पैरों की बेड़ियां  और ढालता अनगिनत सुनहरे सपने  उसे पंसद था रात्रि के तीसरे पहर में  सप्तम सुर मे विलापता वैरागी मुझे पसंद थी खारे चेहरे लिए  वियोगी के प्रेम में पगी स्त्रियां  हम मिले अनायास व सहज ही  क्षितिज और आसमान की तरह।। ___________________________ ‍‍‍‍‍‌ अतुल कुमार प

रेप

आज पूरा देश स्तब्ध है, सबके होठों पर अनगिनत सवाल हैं आंखें पथरा चुकी हैं, हृदय में शोले उमड रहे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं होता जिस दिन अखबार मैं खून से रंगी खबरें ना होती हो ।ये कैसा देश बन चुका है ?चारों तरफ जोंबी घूम रहे हैं ।देश को फिर एक सनसनीखेज मिल गई है।चैनलों की टी आर पी भी बढ़ रही है। कैंडल मार्च निकल रहे हैं, हाथों में तख्तियां लिए हुए विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं ,लंबे लंबे लेख लिखे जा रहे हैं, कविताएं लिखी जा रही हैं।परन्तु हर बार की तरह हम फिर भूल जाएंगे।हम कभी निर्भया ,कभी दामिनी ,कभी आशिफा ,कभी नैंसी, कभी संजली इत्यादि ऐसे अनगिनत नाम है, किन-किन का नाम लूँ। भारत में हर 6 मिनट पर एक बलात्कार होता है। इतना इतना असुरक्षित माहौल शायद पहले कभी नहीं था स्त्रियां कहीं सुरक्षित नहीं है ना घर में ना पड़ोस में ना स्कूल में नसरत पर ना सड़क पर ना स्टेशन पर ना बाजार में कहीं नहीं। पूरा देश शोक संतप्त है,अभिशप्त है ऐसे समाज में जीने को। मुझे तो पुरूष होने पर ग्लानि हो रही ,शर्म आ रही है National crime bureau के अनुसार बलात्कार के 90% आरोपी पीड़िता की रक्त संबंधी है। हमें क्या डूब मरना नहीं च

मजदूर

$$$मजदूर  $$$   १  मई  2015 मै मजदूर हूँ  मै जन्म से मजदूर हूँ  शायद उससे भी पहले से मै पैदा होने से पहले से ही  चिर मजदूर हूँ  आदिम पसीने से लथपथ देह हाथो पर पड़े अकाल की रेखाओं में  अंकुरित प्रेम का हस्र हूँ । कितना कुछ भरा है मैंने इन हाथों से कभी अपना पेट,  कभी उनका खलिहान, कभी जुबान बंधक,  कभी गिरवी मकान अमीरों ,महाजनों के वैभव और ठाट का औचित्यहीन नित्य चिंतन-विमर्श हूँ ... मैं मजदूर हूँ आदिम मजदूर हूँ । मैं मजदूर हूँ  धरा का अन्तिम व्यक्ति  क्षुधा की आग में सेकी है रोटियां  खेला हूँ मजबूर होकर रोटी कि गोटियाँ  चिर काल से मैं मजबूर हूँ  मैं एक मजदूर हूँ । आसमान के नीचे मेरा आशियां चीर धरती का वज्र कवच सोना उपजाया कर समर्पित जीवन असहाय निराश्रित खुद को पाया तुम्हारी सभ्य दुनिया से सदियों दूर हूँ  मैं एक मजदूर हूँ । लगी बोलियाँ बिका बार बार  धर्म मोक्ष समाज से मुझे क्या  बना रहा समाज का हाशिया रक्त स्वेद अश्रु से सिंचित धरा आयी अन्न की बाढ़ पेट कभी न भरा अपने अस्तित्व से कोसो दूर हूँ  हाँ मैं मजदूर हूँ । लिए बुभुक्षित मन व्यथित तन बना रहा सत्ता के नींव की ईट आये तुफान दरके सिघासन गि

वृक्ष

कुछ पंक्तियाँ कभी देखा है आपने वृक्ष को गिरते हुए? वृक्ष तब नहीं गिरता जब उसकी डालें काट दी जाती हैं, वृक्ष तब भी नहीं गिरता जब बढ़ती उम्र के साथ पत्ते उसका साथ छोड़ देते हैं, वृक्ष तब ढहने लगता है जब परिंदे घोंसला छोड़ जाते हैं... कितना सामान्य है किसी पिता का वृक्ष होना! ✍️अतुल पाण्डेय

आओ बसन्त!स्वागत है तुम्हारा।

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आओ!बसंत तुम्हारा स्वागत है। बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं।  प्राचीन भारत  में पूरे वर्ष को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और "कामदेव" की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं।  आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, उसका तो कहना ही क्या वह तो मानो सा