khula aasaman
उसे उड़ने के लिये खुुुलआ आसमान चााहिये था फैलाने के लिए पंख मुझे बंद मुट्ठी का कोना जिसमें छिप सकूं दुनिया के झंझवातो से सुदूर घुप्प अंधकार में उसे चाहिए थी माघ की गुनगुनी धूप जहाँ करवट ले सके अल्हड़पन मुझे चाहिए था साँसो का कारोबार ताकि भर सकूं निश्चेष्ट लोगों की साँसे जो मसले हुए हैं खुद की लाशों तले उसे चाहिए था बेमौसम की बरसात जिसमें भींगो दे अपने सभी अनकहे सूखे जज्बात बिखेर दे दुख मे पगी हुई खुशियाँ मिट्टी की सोंधी सुगंध के वास्ते मुझे चाहिए था सभी सितारों की रौशनी जिससे भर दूं दुनिया के पृष्ठ में छिपे अंधेरों में जहाँ जमा की जा रही मक्कारियां उसे चाहिए था परिजात के फूलों की माला जिसे पहनाती अपने प्रियवर को अनायास ही उसके वक्षस्थल पर रखकर माथा मुझे चाहिए था उन करोड़ों भूखे पेटों की आंच जिसमें गलाता पैरों की बेड़ियां और ढालता अनगिनत सुनहरे सपने उसे पंसद था रात्रि के तीसरे पहर में सप्तम सुर मे विलापता वैरागी मुझे पसंद थी खारे चेहरे लिए वियोगी के प्रेम में पगी स्त्रियां हम मिले अनायास व सहज ही क्षितिज और आसमान की तरह।। ___________________________ अतुल कुमार प