हमारे हमारी मित्रता सूची में बहुत से लोग ऐसे हैं जो दिन रात फेक न्यूज़ अर्थात भ्रामक या अर्ध सत्य खबरें शेयर करते रहते हैं इन लोगों को अभी भी भरोसा है की टीवी पर न्यूज़ चैनल देख कर सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं समय-समय पर ऐसे लोगों को समझाने का प्रयास करता हूं तथा फेसबुक पर द्वारा दिए गए अनफॉलो अमित्र तथा 30 दिन के लिए इनके पोस्टों को अदृश्य करने के विकल्प का प्रयोग करता हूं कोना के संबंध में फेसबुक टि्वटर व्हाट्सएप तथा खासकर यूट्यूब पर अनेक फर्जी तथा भ्रामक सूचनाएं फैली हुई है इसको रोना काल में तमाम लोगों की नौकरियां चली गई तमाम लोगों की बहुत से लोग अपनी जान से हाथ धो दिए बहुत से लोग भुखमरी की कगार पर है सरकारों को भयंकर आर्थिक घाटा हुआ है परंतु कुछ लोग ऐसे हैं जिन को फायदा ही फायदा हुआ है जैसे यूट्यूब पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बेवकूफ पत्रकार तथा एंकर पुलिस स्टाफ। यह सभी लोग अप पोस्ट जानकारियां फैलाकर सनसनी फैलाकर भ्रामक हेडिंग या शीर्षक बनाकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं जिससे कि इनकी टीआरपी बढ़ सके इनकी भी वर्ष बढ़ सकें इनके लाइक और कमेंट पढ़ सकें मैंने तो इन न्यूज़ चैनल को देखना ही
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Showing posts from April, 2020
स्पर्श के हस्ताक्षर
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उफ़!कितनी उदास शाम है।अल्हड़ पुरवाई भी बहका नहीं रही है।कोयल की बोली की मिठास भी हृदयान्तर के कड़वाहट को धो नहीं पा रही।रफी के संजीदा गाने में रूहानियत ही ना रही।गुलाम अली अब बेसुरा गाता है,वो लरजिस ही ना रही... न ही किशोर के चुलबुले नटखट गानों के झोंके। कितना कुछ बदल सा गया है।तुम्हारे बगैर जीवन नीरस हो चला है।दूरियों का भौतिक अस्तित्व अब डराता है।पूरी दुनिया जम सी गई है।सुबह होता है और बमुश्किल रात होती है।शाम हुए जमाना हो गया।मैंने कभी तुम्हे छुआ नहीं है पर अंगुलियों में तुम्हारे देह के स्पर्श क्यों याद आ रहे?मैं नहीं जानता.तुम्हारा न होना उतना ही झूठा है जितना कि तुम्हारा होना।तुम मुझसे कभी मिली नहीं परन्तु मेरे होठों पर तुम्हारे अहर्निश चुम्बनों के निशान तुम्हारे होने की दुहाई दे रहे।बालों में तुम्हारी हथेलियों के नर्म निशान उलझे हुए हैं। तुम्हारी पथरायी आँखों में अब भी मैं एक इंतिजार की राह दखता हूँ जिस पर मेरी स्पर्श के स्पष्ट हस्ताक्षर हैं। क्या कहूँ ?मेरे कहने और सोचने में कोई साम्य नहीं है।तुम्हे याद है!मैंने कहा था कि शब्द कभी भाव के पर्याय नहीं हो सकते हैं।इनकी क्षमता से बा
ब्रह्माण्ड और हमारा अस्तित्व
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आज मैं दृश्यमान ब्रह्मांड के सुपरक्लस्टर के, वीगो सुपर क्लस्टर के, लोकल आकाशगंगा समूह में स्थित मंदाकिनी आकाशगंगा की ओरियन भुजा में स्थित सौर मंडल के, पृथ्वी नामक ग्रह पर स्थित एशिया महाद्वीप के, भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य में भारतवर्ष नामक देश में उपस्थित, उत्तर प्रदेश नामक राज्य के अंत में एक देवरिया जनपद के पुच्छ पर स्थित सलेमपुर तहसील के केंद्र में अवस्थित श्री रैनाथ ब्रम्हदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय सुगहीं सलेमपुर की शिक्षा संकाय में कुर्सी पर बैठा हुआ,यह लिख लिख रहा हूं। हमारी आकाशगंगा का 100000 प्रकाश वर्ष वर्ष व्यास तथा 3000 प्रकाश वर्ष मोटी सर्पिलाकार संरचना है। हमारा सूर्य इसके केंद्र से 26000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है तथा 250 किलोमीटर प्रति सेकेंड की दर से आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है ।जबकि एक प्रकाश वर्ष में 95.5 खरब किलोमीटर के बराबर होता है। कितना विशालकाय है हमारा ब्रह्माण्ड!इसी अकाशगंगा की ओरियन भुजा में स्थित सौर मण्डल के एक ग्रह पृथ्वी पर जीवन उत्पन्न हुआ था।वह जीवन आज से करीब 400 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। विभिन्न भौतिक व जैव रासायनिक क्रियाओ
शहरीकरण
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शहर उतरता है टी वी फिल्मों के रास्ते गाँव में घुलता जाता शनैः शनैः रक्त में किसी हार्मोन की तरह दिखाता कंक्रीट की वादियों का सब्जबाग जिनमें है कुछ उड़ती हुई सेल्फियाँ कुछ एक सन्नाटे को शोर है बहुमंजिली इमारतों में जड़े सितारों की लड़िया, जिनके पाँव को वक़्त नहीं कि नाप ले दहलीज अपने अस्तित्व की। चिड़ियों की चहचहाहाट को चीरता दैत्यनुमा गाड़ियों का कर्कश शोर गमलों में सिमटते बरगद की छाँव सड़कों की रफ्तार से पीछे छूटते गाँव अब हर घरों में शहर बस रहे हैं .. सम्बन्धों के नये आयाम शहरी परम्पराओं की आरोपित आवृत्ति 'सब कुछ बिकता है' की निर्लज्ज प्रवृत्ति समय की निकटता सम्बन्धों की दूरी हरा मुखौटा पहने शहर खुलकर विहँस रहे हैं .. अब शहर गाँवों में उतर रहे हैं .. ✍ अतुल पाण्डेय
मरती संवेदना
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कविता यह मरती हुई संवेदनाओं का देश है जहाँ एक पैर दूसरे पैर को नहीं पहचानता जहाँ शहर हर रोज मेरा गाँव खाता जा रहा जहाँ महलों से आती रोशनी झोपड़ीयाँ जला रहीं जहाँ एक हाथ में फोन और दुसरे में तलवार है यह मरती हुई संवेदनाओं का देश है। यह डूबती हुई संभावनाओं का देश है जहाँ किसान ज़हर खाता है जहाँ छात्र लाठी खाते हैं जहाँ सेना पत्थर खाती है जहाँ भीड़ आदमी खाती है जहाँ सरकार घूस खाती है यह डूबती हुई संभावनाओं का देश है। यह आहत हुई भावनाओं का देश है जहाँ मिनारें आग उगलती हैं जहाँ घण्टों से चिंगारी निकलती है जहाँ भाषा दंगे कराती है किताबें घर जलाती हैं जहाँ झण्डों पर ख़ून के छींटे हैं। यह कुंठित-दमित वासनाओं का देश है जहाँ कलियाँ मसल दी जाती हैं चेहरे झुलसा दिये जाते हैं शरीर में पत्थर डाल दिये जाते हैं आँखो से एक्स रे लिए जाते हैं रिश्तों की आड़ में बच्चे नोंच लिए जाते हैं यह मरती हुई संवेदनाओं का देश है।