"चंद कलियां निशात की चुनकर मुद्दतों महवे यास रहता हूं तेरा मिलना खुशी की बात सही तुझ से मिलकर उदास रहता हूं...!"(-साहिर) आज साहिर का जन्मदिन भी है ।बिलकुल यही मनोदशाहै मेरी,अब तुमसे विदा लेना तुमसे मिलने से बेहतर लगता है।NFK की एक लाइन है कि... आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ। तुमसे मिल कर एक टीस सी उठती है, वो टीस फिर से तुम्हे विदा कहने का साहस दे जाती है। सोचता हूं बारहा सोचता हूं कि कभी तुम्हें मेरा देखना दिखाई दे।
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Showing posts from October, 2022
माट्टो की साइकिल
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जर्जर हो चुकने के बाद भी वह पुरानी साइकिल मट्टो पाल की जीवनरेखा है. कभी उसके पहिये का रिम टेढ़ा हो जाता है, कभी मडगार्ड उखड़ जाता है तो कभी उसकी धुरी का संतुलन बिगड़ने लगता है. मट्टो बेलदार है, दिहाड़ी पर मजूरी करता है. अक्सर बीमार पड़ जाने वाली बीवी से उसकी दो बेटियां हैं - नीरज और लिम्का. नीरज शादी के लायक हो गई है जिसके दहेज के लिए मट्टो से मोटरसाइकिल की मांग है. कायदे से किशोरवय लिम्का को स्कूल जाना चाहिए लेकिन ज़माने का चलन देखते हुए मट्टो ने उसे घर पर रखने का फ़ैसला किया हुआ है. सूचना और चकाचौंध से अटी जो इक्कीसवीं शताब्दी हमें नज़र आती है, जंग लगी मट्टो की साइकिल उसकी छद्म आधुनिकता पर लगे असंख्य पैबन्दों को उघाड़ कर रख देती है. एक घटनाक्रम है. मट्टो सड़क किनारे टोकरी लगाए लौकी-तुरई बेच रहे अपने ही जैसे एक आदमी से मोलभाव कर रहा है. दूसरे किनारे पर झाड़ियों से टिका कर रखी गई साइकिल को वहां से गुज़र रहा एक ट्रैक्टर कुचल जाता है. इस त्रासदी के बाद दर्द और हताशा में किया गया मट्टो का दीर्घ आर्तनाद किसी क्लासिकल ग्रीक त्रासदी की याद दिलाता है. अगले दृश्य में चार लोगों का परिवार साइकि
डायरी
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यह अक्टूबर है,नहीं यह हरसिंगार का महीना है।सुबह से झमाझम बारिश हो रही है।दशहरा भी बारिश में धुल गया है। मैं सुबह से good morning के जवाब की प्रतीक्षा में हूं। पल पल पर इनबॉक्स चेक कर रहा हूं।उसका जवाब नहीं आया अब तक,हो सकता है समय न मिला हो,हो सकता है मूड ऑफ हो या ये भी हो सकता है कि कोई आस पास हो। हर एक अनुमान दूसरे अनुमान को काट दे रहा। एक गालिब का शेर याद आ रहा है कि "मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने मरने में,उसी काफिर में मरते हैं कि जिस काफिर पर दम निकले"। घायल मन सहानुभूति खोजता है।लेकिन धीरे धीरे सहानुभूति का आदि हो जाता है तो अपने को घायल करने से भी परहेज नहीं करता।
भगत सिंह की फांसी और गांधी की भूमिका
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क्या गांधी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को बचाने की जगह लार्ड इरविन से उनको फाँसी देनी ही है तो जल्दी देने की मांग की? सवाल नया नहीं है, गांधी विरोधियों का बहुत पुराना और प्रिय हथियार रहा है. जवाब भी नया नहीं है- गांधी ने पूरी कोशिश की, अंत तक. सफल नहीं हुए! पर फिर से कुछ सावरकर भक्तों ने यही सवाल हवा में उछाल दिया है- वो भी आजीवन कांग्रेसी रहे पट्टाभि सीतारमैया की किताब- "कांग्रेस का इतिहास-(1885-1947) खंड-1" निकाल। दावा: पट्टाभि के मुताबिक उस रोज गांधी ने वायसराय लार्ड इरविन से भगत सिंह की फांसी को लेकर ये कहा था-"भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देनी है तो कराची के अधिवेशन के बाद देने के बजाए, पहले ही दे दी जाए। ताकि देश को पता चल जाए कि वस्तुत: उसकी क्या स्थिति है और लोगों के दिलों में झूठी आशाएं नही बंधेंगी।" सच 1: सवाल तो यह भी होना चाहिए कि भगत सिंह की सजा रोकने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (तब 6 साल हो गए थे स्थापना के) और सावरकर- उन्हें माफ़ी मांग अंडमान से 1921 में रिहा होने के बाद 10 साल हो चले थे. गांधी हिंसा के विरोधी थे, इस झूठे दावे