डायरी
तुम्हें देखना एक पवित्र कार्य है।तुम्हारे निष्कलंक चेहरे को मैं घंटो देखा करता हूं। सहेजे गए तुम्हारे चित्र को देखना मेरी पुरानी शय है।देखते देखते लगता है पिक्सलों से होते हुए अणुओं परमाणुओं तक पहुंच गया होऊं जहां मेरा अस्तित्व तुम्हारी आत्मीयता का आलिंगन करता है। तुम्हारी प्रतीक्षा में दिन यूं बीतते है जैसे पलकों का झपकना।प्रतिक्षाएं बिखरी पड़ी हैं संसार में,किस प्रतीक्षा की आयु कितनी है कौन जाने, पर हां कुछ की आयु अनंत होती है। जैसे सूरज का समुद्र में डूब जाना., समुद्र की घोर प्रतीक्षा का फल है। समुद्र की अथाह जलराशि की सीमा प्रतीक्षा करने तक ही है।