संबध
संबंधों के सिलसिले में कितनी दूर खड़ी हो तुम? कितनी बार छूने की कोशिशे की है मैने अंतस में सिमटे भावों को हर बार अँगुलियाँ मुड़ गयी हैं.. कभी कोशिश नहीं की तुम्हारे चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ने की तुम्हारा निस्पृह निश्छल मौन ही मुझे आप्यायित करता है मैं महसूस करता हूँ तुम्हारे कांपते होठों के अस्फुट शब्दो को जो प्रत्याशा में हैं कुछ फूट पड़ने के एक अनाम सा रिश्ता चिखता है अपने हस्र की दुहाई देकर, लिपटा रहा है तुम्हारा अस्तित्व मेरे साँसों के हर कतरे पर पलकों की इल्तिजा हो फिर मैं एक बार जी उठूं.. YourQuote.in