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Showing posts from August, 2023

संबध

संबंधों के सिलसिले में कितनी दूर खड़ी हो तुम? कितनी बार छूने की कोशिशे की है मैने अंतस में सिमटे भावों को हर बार अँगुलियाँ मुड़ गयी हैं.. कभी कोशिश नहीं की तुम्हारे चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ने की तुम्हारा निस्पृह निश्छल मौन ही मुझे आप्यायित करता है मैं महसूस करता हूँ तुम्हारे कांपते होठों के अस्फुट शब्दो को जो प्रत्याशा में हैं कुछ फूट पड़ने के एक अनाम सा रिश्ता चिखता है अपने हस्र की दुहाई देकर, लिपटा रहा है तुम्हारा अस्तित्व मेरे साँसों के हर कतरे पर पलकों की इल्तिजा हो फिर मैं एक बार जी उठूं.. YourQuote.in

मौन

तुम्हारे ना और मेरे हाँ के बीच की समतल जमीन पर मैंने एक ख्वाब उगाया था जिसकी जड़ें तुम्हारे रूह तक जरूर पहुँचती होंगी .. कितनी साफगोई से झूठ बोल गये खुद से जबकि तुम्हे भी ये खबर थी आँखे झूठ नहीं बोलती.. सहमी सहमी अंगुलियों का झूठा स्पर्श शब्दों की नीरीहता और तुम्हारा एकाग्रचित्त मौन सब झूठे हैं, तुम भी वहीं खड़े हो मैं भी वहीं खड़ा हूँ हमलोगों की बीच की दूरी बढ़ती चली जा रही किसी दरार के दोनों किनारों की तरह.. बस इक सच है तो है तुम्हारा होना.. - अतुल पाण्डेय YourQuote.in और तुम्हारा एकाग्रचित्त मौन