#नमक_और_स्त्री हर रेसिपी की विवरणिका में लिखी गयी तमाम सामानों की मात्राएँ अंत में लिखा गया नमक स्वादानुसार, स्त्री नमक थी हर ग्रन्थ के प्रस्तावना में स्वादानुसार मिलायी जाती रही।।
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Showing posts from July, 2020
टूट कर बिखरना
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#टूट_कर_बिखरना कल मौसम कुछ सर्द था चाय की चुस्कियां रवानी पर थी बातें तो नहीं थी कुछ भी नहीं था तुम भी नहीं थे हाथ बिन छुए लौट के चले आये लौटे प्रबल आवेग से तुम्हारी तरफ मुट्ठियों में भींच लेने को सर्प की भांति लिपट जाने को कुछ भी नहीं था बातें भी नहीं थी फिर भी तुम मुझमें करवट बदल रहे थे... फिर एक मगरूर हवा का झोंका आया खिड़की पर रखा कप कांप उठा हिल गया वजूद उसका आखिर टूट ही गया गिर कर और भी बहुत कुछ टूट गया कप के साथ साथ वो भरम भी वो आशा भी जो मुझे हम होने की तसल्ली देता था । किरचे बिखरे पड़े थे आसमान की ओर मुँह बाये अब यादें करवट बदल रही थी। ----------------------------यायावर
उम्र
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Disclaimer:-एक बार मास्क पहनने के बाद कृपया नीचे ना खींचे। उम्र कुछ खिंची खिंची सी लगती है बनावटी हाव भाव चेहरे पर पुती वरिष्ठता की परिभाषा ड्रेस कोड की खड़ी पंक्तियाँ मोटे लेंसों के परिधि पर खड़ा खड़ा देखता हूँ मैं, सबकुछ पीछे जाते हुए सिमटे हुए बचपन को कैशोर्य का विद्रोह को और समाज के नजरो से दबे वर्तमान को आईने लगाये चेहरों में अपना प्रतिबिम्ब उदास व धुँधला नज़र आता है। मेरे वजूद के टुकड़ों की अठखेलिया मेरे किरदार को खण्डित करती हैं आँखे चमक उठती हैं जिम्मेदारियां सर पर सवार होती हैं और जिन्दगी चल पड़ती है।। ✍️अतुल पाण्डेय
प्रेम-अंकुर
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उम्र की ढलती दोपहर में उसके अंदर से फूटा प्रेम-अंकुर, जैसे गूलर के फल में पनप रहा हो गूलर का फूल। जैसै अषाढ़ की कच्ची बरसात में सहज ही फूट उठता है मिट्टी-धूल के नीचे दबा पड़ा स्नेह-बीज। अंकुर जड़ें पहुँचीं हृदय की अतलतम कंदराओं में, जहाँ बिखरी पड़ी हैं वय:संधि काल की उमंगो के टुकड़े । जड़ों ने सोखा वर्जनाओं के पहाड़ तले दबे अश्रु-स्वेद के अधकचरे जीवाश्म को, अनायास ही साँसों में भरा उलझती लटों में लिपटी बसंती हवाओ को, पहन लिया नव-पल्लव उम्र की गाँठों पर सहज ही, और उछाल दिया हथेलियों को आसमान के जानिब मुठ्ठी में भर लिया बचा-खुचा आसमान, उड़ते पंछीयों के झुण्ड में से थाम लिया मचलकर किसी भटकते पंछी का हाथ, लगाये अनगिनत गोते साथ-साथ सूरज की आड़ में...✍अतुल पाण्डेय
जिम्मेदारी
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उम्र कुछ खिंची खिंची सी लगती है बनावटी हाव भाव चेहरे पर पुती वरिष्ठता की परिभाषा ड्रेस कोड की खड़ी पंक्तियाँ मोटे लेंसों के परिधि पर खड़ा खड़ा देखता हूँ मैं सबकुछ पीछे जाते हुए सिमटे हुए बचपन को कैशोर्य का विद्रोह को और समाज के नजरो से दबे वर्तमान को आईने लगाये चेहरों में अपना प्रतिबिम्ब उदास व धुँधला नज़र आता है। मेरे वजूद के टुकड़ों की अठखेलिया मेरे किरदार को खण्डित करती हैं आँखे चमक उठती हैं जिम्मेदारियां सर पर सवार होती हैं और जिन्दगी चल पड़ती है
गुरूजी स्मृति
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#स्मृति_शेष गुरूजी संस्मरण-१ 20वीं सदी का उत्तरार्ध।युगान्तकारी 80-90 का दशक। उत्तर प्रदेश के अंतिम पूर्वी छोर पर स्थित मेरा गांव।पिछड़ा इतना कि अंग्रेज भी नहीँ पहुँच पाये। ग्लोबलाईजेसन और नव-उदारवाद का दौर जब सभी क्षेत्र में निजी कम्पनियां पैर पसार रहीं थीं।छोटे-छोटे कस्बो तक प्राइवेट विद्यालय खुल रहे थे।सरकारी स्कूलों अस्ताचल की ओर जा रहे थे।बाज़ारवाद का दौर शुरू हुआ था।मुंशी जी व् पंडी जी कहलाने वाले अध्यापक "सर जी" से पदस्थापित हो रहे थे। इसी दौर में गांव के पूर्वी मुहाने पर एक आश्रम की स्थापना हुई। नाम रखा गया लोक चेतना आश्रम जो कालान्तर में क्षेत्र में गांधी आश्रम नाम से जाना जाने लगा।आश्रम की स्थापना की श्रीनारायण पाण्डेय जी ने जिनको प्यार से सभी क्षेत्रवासी गुरु जी कहते थे। मैं गाँधी जी को नहीँ देखा था पर गुरूजी को देखा था।एक छोटी सी कुटिया।।छोटा सा कद।बड़ी बड़ी मूंछें।आँख पर बड़ी सी ऐनक।खद्दर का कुरता,पायजामा और गमछा,चादर,तकिया विस्तर वगैरह सब ।वो भी स्वयं के काते हुए सूत का।पैरो में खड़ाऊ।ओजस्वी ललाट,प्रखर किन्तु सौम्य वक्तृता शैली।साफा की तरह सिर पर बांधी हुई
न्यायिक हत्या और बाहुबली तंत्र
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सामान्यतः एनकाउंटर किया नही जाता अपितु दुर्भाग्य से हो जाता है......परन्तु यहाँ तो एनकाउंटर बा कायदे किया जा रहा। यह खबर त्वरित रूप से सन्तोषजनक है।परन्तु यह पैटर्न सही नहीं।यह हमारे सडे हुए न्याय तंत्र और और न्याय प्रक्रिया में हुई देरी का परिणाम है कि लोग खुश भी हो रहे।लोग त्वरित न्याय होते देखना चाह रहे। खाकी,अपराधी और खादी का गठजोड़ किसे नही पता?खादी, खाकी को प्रमोशन दिलावता और खाकी खादी को संरक्षण।इन दोनों को जोड़ने का काम करते अपराधी। आज पुलिस इतनी आक्रामक तब हुई है जब अपराधी का हाथ खाकी के गिरेबान तक आया है।पिछले 20 सालों तक सब मौन थे। और सबसे खतरनाक पैटर्न यह है कि विभिन्न जाति में जन्म लेने वाले दुर्दांत अपराधी अपने जाति के आन-बान-शान के प्रतीक बन जा रहे।इसके बाद अपराधी विशेषण केवल विधिक रजिस्टर में ही रह जाता।बाहर की दुनिया में ये " बाहुबली" नाम से संबोधित होते हैं। आपने कभी सुना है क्या! अपराधी राजा भैया,अपराधी अतीक अहमद,अपराधी ब्रजेश सिंह या फिर अपराधी हरि शंकर तिवारी? नही,क्योकि इनके बाहुबल से खादी वोट बटोरती है और इसी खादी के लिए मीडिया नरेटिव सेट करती है। पुलिस क