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आज 19 फ़रवरी 2024 को उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय बहादुरपुर बड़हरिया ब्लॉक सीवान में पहला दिन है मेरा। हालांकि मई गोल्डन और शक्ति भईया कॉलेज आवंटन के बाड़ आ कर देख गए थे। बहुत थकान हुईं थी। पहले घर से पचास किमी सिवान आए फिर वहां से गूगल मैप की सहायता से 15 14 km बड़हरिया, फ़िर वहां से घूमते घमाते बहादुरपुर। बहुत घुमावदार रास्ते से आए कई गांव पार कर के, देख कर लगा कि मुस्लिम बहुल इलाका है। असली गांव वाला दृश्य था चारो ओर सबके दुआर पर लगभग गए गोरू बकरी थी। खोंप पलान भी। गरीबी साफ दिख रही थी। नेटवर्क भी ठीक नहीं था।मेरे गांव में 5G airtel फ्री इन्टरनेट चलता है। शक्ति भईया और गोल्डन रास्ते भर चिढ़ाते हुए लाये मुझे, मैं अवाक था,, बाइक पर बीच मे बैठे बैठे पता न किन ख़यालो मे खोया हुआ था। सात साल रैना थ कॉलेज में बीता था । वह मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा हो गया था।कितना कुछ सीखा था वहां, टीचर होने का मायने पता चला था वहीं, वहां सभी मुझसे स्नेह रखते थे।लगभग40 का स्टाफ था जिसमें कितने प्रिय लोग थे मेरे।हेड सर मुझे अजातशत्रु कहते थे। मेरे शिक्षा संकाय में दस लोग थे,सब मुझे बहुत मानते थे, उम्र में सब

[1/2, 8:19 PM] अतुल पाण्डेय: इतना चीप बात कर रहे सब टीचर्स की[1/2, 8:19 PM] अतुल पाण्डेय: क्या कहें[1/2, 8:19 PM] अतुल पाण्डेय: मेरे कॉलेज के चपरासी भी उनसे सभ्य हैं[1/2, 8:58 PM] अतुल पाण्डेय: जिस बिहार की बात करता था एकदम वही है।बच्चे बोरा ले कर आ रहे पढ़ने। जमीन पर बैठ जा रहे[1/2, 8:58 PM] अतुल पाण्डेय: वही मुख्यतः एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के वंचित निरीह बच्चे[1/2, 8:59 PM] अतुल पाण्डेय: शायद इतनी बुरी स्थिति मेरे समय में प्राइमरी स्कूलों में हुआ करती थी[1/2, 9:00 PM] अतुल पाण्डेय: आज कल मेरे क्षेत्र में बहुत बेहतर स्थिति में हैं प्राइमरी स्कूल[1/2, 9:04 PM] अतुल पाण्डेय: विद्यालय की टाइमिंग 9 भी से 5 बजे तक किए हैं शिक्षा सचिव बिहार केके पाठक जी।मैं थोड़ा लेट पहुंचा 10 बजे के करीब[1/2, 9:05 PM] अतुल पाण्डेय: पांच पंक्ति में बच्चे लाइनअप थे[1/2, 9:05 PM] अतुल पाण्डेय: प्रार्थना लगभग हो गई थी[1/2, 9:06 PM] अतुल पाण्डेय: बच्चों की भेष भूषा उनकी गरीबी को दर्शा रही थी[1/2, 9:11 PM] अतुल पाण्डेय: जनवरी का महीना और कुछ ही बच्चे गर्म कपड़े पहने हुए थे, बच्चियों के कपड़े अपेक्षाकृतसाफ सुथरे और धुले हुए दिख रही थी।[1/2, 9:12 PM] अतुल पाण्डेय: स्मित चेहरे और शर्मीले व्यवहार से मैच्योरिटी का भाव झलक रहा था उनमें।[1/2, 9:16 PM] अतुल पाण्डेय: कुछ किशोर लड़के जो थोड़े पीछे खड़े थे ,हम नवनियुक्त ट्रेनी अध्यापकों को कौतूहल से देख रहे थे,और आपस में आंखो आंखों में बात कर के हंस रहे थे।[1/2, 9:18 PM] अतुल पाण्डेय: प्रिंसिपल साहेब मुंह में गुटखा लिए हुए गाड़ी से उतरे और फोन निकाल कर टाइम देखे और कोई नंबर डायल कर के कान पर लगा कर बच्चों की कतार के पीछे चले गए और बात करने लगे।[1/2, 9:20 PM] अतुल पाण्डेय: बीच बीच के गुटखे का पीक एक पुराने नल के सटे नाली पर थूक रहे[1/2, 9:22 PM] अतुल पाण्डेय: एक मास्टर साहब जो थोड़े अनुशासित ढंग से नज़र आये वे बच्चों को पंक्ति बद्ध कराए और उनमें से एक एक बच्चे को बुला कर सामने कोई न कोई बात या प्रश्न पूछने को कह रहे थे[1/2, 9:23 PM] अतुल पाण्डेय: ये काम थोड़ा संतोषजनक लगा मुझे[1/2, 9:26 PM] अतुल पाण्डेय: इन मास्टर साहब द्वारा बुलाए जाने परप्राइमरी स्तर के बच्चे संडे मंडे या जनवरी फरवरी टूटी फूटी हिंदी और अंग्रेजी के उच्चारण से बता रहे[1/2, 9:26 PM] अतुल पाण्डेय: मास्टर साहब बीच बीच में उनका हौसला अफजाई भी कर रहे थे[1/2, 9:29 PM] अतुल पाण्डेय: कुछ फैक्ट्स गलत होने पर सुधार किए या प्रश्नवाचक दृष्टि हम लोगों की तरफ भी देखे कि सही है या गलत।।[1/2, 9:31 PM] अतुल पाण्डेय: बाद में बात करने पर पता चला कि ये इकलौते मास्टर साहब प्रिंसिपल सर के अलावा यूपी से हैं ।बाकी सभी आसपास के गांव से ही हैं।[1/2, 9:36 PM] अतुल पाण्डेय: बीटीसी प्रशिक्षउस के इंटर्नशिप के दौरान हमने घूम घूम के निरीक्षण। किया है[1/2, 9:36 PM] अतुल पाण्डेय: इतनी खराब स्थिति कहीं की नहीं थी[1/2, 9:38 PM] अतुल पाण्डेय: खैर हो सकता हैं मुझे ही ऐसे जगह पर मिल गया हो[1/2, 9:39 PM] अतुल पाण्डेय: बेहतर विद्यालय भी होंगे[1/2, 9:49 PM] अतुल पाण्डेय: देखो[1/2, 9:49 PM] अतुल पाण्डेय: बच्चों के व्यवहार से दिक्कत नहीं है[1/2, 9:50 PM] अतुल पाण्डेय: अध्यापकों से है[1/2, 9:50 PM] अतुल पाण्डेय: तनिक न्याय नहीं कर रहे हैं

कालेज में आया हूं, यहां नर्सिंरी या आँगन बड़ी, प्राइमरी,मिडिल  औऱ माध्यमिक तथा उच्छतार माध्यमिक विद्यालय सब है. आज थोड़ा पहले निकला तो समय से ा गया, प्रार्थना में पहुंच गया. तू ही राम हैं तुम रहीम हैं प्रर्थना हुई, उसके बाद राष्ट्र गान हुआ. जिसमे अनेक गलतियाँ थी पर आधे अध्यापक तो आये नहीं थे, जो आये भी थे वे आपस में बात कर रहे थे, एक मास्टर साहेब तो फ़ोन पे बात कर रहे थे, बीच बीच में उनके बात में म भ च  की गलियां आ रही थी. आवाज इतनी तेज की उनके आवाज के आगे प्रार्थना स्वर दब जा रहा था.आज शनिवार हैं तो बच्चोँ की संख्या बहुत कम थी. इस समय इस विद्यालय में 6 नवनियुक्त अध्यापक आये हैँ तो बता रहे लोग कि संख्या बढ़ी हुई है. क्लास 9th में 28 एडमिशन था.पहले चार पांच बच्चे आते थे अब तो 20 तक आ रहे हैँ. हालांकि अभी तक  समय सारणी नहीं है.कोइ भी अध्यापक किसी भी कक्षा में आ  रहा जा रहा,हालांकि सबकी अपेक्षा एबी रह रही कि नाव नियुक्त ही पढ़ाएं. पढ़ा भी रहे, एक नयी लड़की दिख रही सामने छोटे छोटे बच्चों को पढ़ा रही. अनुमान लगा पर रहा कि कक्षा एक दो के बच्चे हैँ.बच्चे बोरा या पालीथीन का टुकड़ा ले कर आये हैँ. ठंडी ज

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]मौसम बहुत खराब हो रहा  कल थोड़ा घाम हुआ था  दिन भर धुंधला धुंधला  घाम मने धूप  बकवास लग रहा ह। कुछ भी अच्छा नहीं  कोई सिस्टम नहीं  गंदगी फैली हुई है   छोटे बच्चो का हल्ला  डिब्बा पर डंडे से बेल लग रही। गुल्ला  Sab MDM me se kha rahe  इतना चीप बात कर रहे सब टीचर्स की  जिस बिहार की बात करता था एकदम वही है।बच्चे बोरा ले कर आ रहे पढ़ने। जमीन पर बैठ जा रहे  क्या कहें  मेरे कॉलेज के चपरासी भी उनसे सभ्य हैं  वही मुख्यतः एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के वंचित निरीह बच्चे शायद इतनी बुरी स्थिति मेरे समय में प्राइमरी स्कूलों में हुआ करती थी : विद्यालय की टाइमिंग 9 भी से 5 बजे तक किए हैं शिक्षा सचिव बिहार केके पाठक जी।मैं थोड़ा लेट पहुंचा 10 बजे के करीब  आज कल मेरे क्षेत्र में बहुत बेहतर स्थिति में हैं प्राइमरी स्कूल  प्रार्थना लगभग हो गई थी : पांच पंक्ति में बच्चे लाइनअप थे  बच्चों की भेष भूषा उनकी गरीबी को दर्शा रही थी  स्मित चेहरे और शर्मीले व्यवहार से मैच्योरिटी का भाव झलक रहा था उनमें। : जनवरी का महीना और कुछ ही बच्चे गर्म कपड़े पहने हुए थे, बच्चियों के कपड़े अपेक्षाकृतसाफ सुथरे और धुले हुए दिख रह

घड़ियां

घडियां दौड़ रहीं  सूरज भी दौड़ रहा  शहर दौड़ रहे गाँव भी रेग रहा सब भाग रहे  कहीं कोई नहीं पहुंचा कहीं भी, नदियों सकुच के नलो में बह चली  जंगल भागते पहुँच गया लान और छतों पर जमीन पहुंच गई लाल कारपेट के नीचे  पर्वत ने पैठ बनायी खड़ी कोट के हृदय खण्डो में वो भी चली शरीर के भीतर पर नहीं पहुंची कहींP। उसने भी थामी वक्त की डोर दौड़ पड़ी बिना शर्त  दौड़ पड़ी आसमान की ओर घडियो की बात सुनी उसने कहीं नहीं पहुंची वो भी  उसने आटे में गूँथ दिया प्रेम उसने टाँक दिया प्रेम को उखड़ते बखिये में   उड़ेल दिया प्रेम बेसिन के जूठे बर्तनों में भर दिया बच्चों की टिफिन में चढ़ा दिया प्रेम को खुस्क होठो पर अलसाये शाम के चाय की कड़वी घूंट में रात के निस्तब्धता में  अँगुलियों पर गिन गिन कर खर्च किया प्रेम साँसों की धौंकनी पर रख कर पोछ डाला प्रेम पात्र। सुबह के अलार्म से उठी आँखे उठाती हैं किचेन बाथरूम  टिफिन बिस्तर चादर नमक तेल की छवियां  चढ़ते दिन के साथ बढ़ती सांसो की बोझ धकियाते पाँव लाकर पटक देते हैं  दम घोटूं बिस्तरो पर छितराये सन्नाटे की चादर पर। उसने घड़ियों से चुराये  प्रेम के एक आध कतरों को सहेजा हृदय क

चीन

- अक्सई चिन, अरे वही जिसे नेहरू चीन से हार गए - भक्त ने गोल गोल आखों से खुलासा किया  - भक्त भाई, कोई चीज आप तब हारते हो, जब वो आपके पास पहले से हो। तो बताओ, अक्सई चिन भारत मे कब शामिल हूुआ? वो कौन वीर था। किसने इसे जीतकर भारत मे मिलाया। मौर्य ने, मुगल ने, अग्रेजों ने ??      भक्त, पप्पा से पूछने गया है। अभी तक लौटकर नही आया।  --- आएगा भी नही, पर मै आपको बताता हूं। अक्साई चिन जीतने वाला न कोई वीर था, न राजा, न जनरल। वो एक नक्शानवीस था, सर्वेयर... नाम था जानसन । तो जानसन भईया ने नक्शे पर एक लाइन खींची और अक्साई चिन भारत मे आ गया। यह 1855 की बात है।  आप कहेंगे कि ठीक है भई। नक्शे पर ही सही सही, नेहरू को क्या हक था उसे छोड़ देने का।  यह भी गलत है। चीन को अक्साई चिन भेट करने वाला भी कोई राजा, जनरल या भारत का प्रधानमंत्री नहीं था। वो एक दूसरा नक्शानवीस था। ब्रिटिश अफसर, एन्वॉय / राजदूत था । चीन को सन्तुष्ट करने के लिए भाई ने नक्शे पर दूसरी लाइन खीची, और अक्साई चिन चाइना मे चला गया।  इन दूसरे भैया का नाम था मैक्कार्टनी... साल था 1896। नेहरू इस वक्त सात साल के थे। पर मक्कार मैक्कार्टनी का सारा

सूरज

वो सुबह होते ही उठा लेता है माथे पर सूरज और डूबो देता है पच्छिम में शाम होते होते फिर कल उठाने के लिए... वो खर्च करता है पसीने की एक-एक बूंद दो चार जोड़ी आखों के वास्ते एक घोंसला बनाने के लिए... वो उधार देता है सूरज को कोयला गर्मियों में ताकि बरसा सके रौशनी सबके लिए और खुद के लिए आग... निर्निमेष आँखों में दमित भावों के ग्लेशियर उसने थाम रखें हैं कई पीढ़ियों से  क़यामत के इंतिजार में... ____________________ पेन्टिंग गूगल से साभार