गुरूजी स्मृति
#स्मृति_शेष गुरूजी संस्मरण-१ 20वीं सदी का उत्तरार्ध।युगान्तकारी 80-90 का दशक। उत्तर प्रदेश के अंतिम पूर्वी छोर पर स्थित मेरा गांव।पिछड़ा इतना कि अंग्रेज भी नहीँ पहुँच पाये। ग्लोबलाईजेसन और नव-उदारवाद का दौर जब सभी क्षेत्र में निजी कम्पनियां पैर पसार रहीं थीं।छोटे-छोटे कस्बो तक प्राइवेट विद्यालय खुल रहे थे।सरकारी स्कूलों अस्ताचल की ओर जा रहे थे।बाज़ारवाद का दौर शुरू हुआ था।मुंशी जी व् पंडी जी कहलाने वाले अध्यापक "सर जी" से पदस्थापित हो रहे थे। इसी दौर में गांव के पूर्वी मुहाने पर एक आश्रम की स्थापना हुई। नाम रखा गया लोक चेतना आश्रम जो कालान्तर में क्षेत्र में गांधी आश्रम नाम से जाना जाने लगा।आश्रम की स्थापना की श्रीनारायण पाण्डेय जी ने जिनको प्यार से सभी क्षेत्रवासी गुरु जी कहते थे। मैं गाँधी जी को नहीँ देखा था पर गुरूजी को देखा था।एक छोटी सी कुटिया।।छोटा सा कद।बड़ी बड़ी मूंछें।आँख पर बड़ी सी ऐनक।खद्दर का कुरता,पायजामा और गमछा,चादर,तकिया विस्तर वगैरह सब ।वो भी स्वयं के काते हुए सूत का।पैरो में खड़ाऊ।ओजस्वी ललाट,प्रखर किन्तु सौम्य वक्तृता शैली।साफा की तरह सिर पर बांधी हुई
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