सूरज
वो सुबह होते ही
उठा लेता है माथे पर सूरज
और डूबो देता है पच्छिम में शाम होते होते
फिर कल उठाने के लिए...
वो खर्च करता है
पसीने की एक-एक बूंद
दो चार जोड़ी आखों के वास्ते
एक घोंसला बनाने के लिए...
वो उधार देता है
सूरज को कोयला गर्मियों में
ताकि बरसा सके रौशनी सबके लिए
और खुद के लिए आग...
निर्निमेष आँखों में
दमित भावों के ग्लेशियर
उसने थाम रखें हैं कई पीढ़ियों से
क़यामत के इंतिजार में...
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पेन्टिंग गूगल से साभार
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